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हिंदी में कुल ५,७३४ पाठ हैं।
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मार्च की निर्वाचित पुस्तक
"जब मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में पैर रखता है तो सबसे कठिन बात जो इस शिष्य को मालूम होती है वह मन को अपने वश में रखना है। यह कितना क्लिष्ट और कष्टसाध्य कार्य है, इसका केवल वे ही मनुष्य अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने इसके लिए कुछ परिश्रम किया है। जब हम विचारों को अपने आधीन रखने के सम्बंध में सोचते हैं तब हमें कुछ अनुभव होता है कि मन सदैव कितना उद्दंड और अशासित अवस्था में रहता रहा है और वह कैसे हर प्रकार की और हर विषय की विचार तरंगों का पात्र रहा है और कैसे सब प्रकार के संकल्प विकल्पों का द्वार रहा है। इस बात को देखकर हमें बड़ा विस्मय होता है और साथ ही साथ लज्जा भी आती है कि हम ने कितना अमूल्य समय व्यर्थ चंचल विचारों में नष्ट कर दिया है। वह समय जिसको यदि हम उचित रीति से उपयोग में लाते और उसको किसी अभीष्ट के सिद्ध करने में लगाते तो निस्संदेह हम शक्तिशाली और दृढ़ चारित्रवान बन जाते। ऐसा समय यदि हम शुभ विचारों और शुभ भावनाओं में लगाते तो हमारा जीवन सुधर जाता, हमारी अंतरात्मा पवित्र हो जाती, हम प्रभावशाली बन जाते और हम में आत्मिक शक्ति का महत्व आ जाता।"...(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
पहिले करि परनाम नंद सों समाचार सब दीजो।
और वहाँ वृषभानु गोप सों जाय सकल सुधि लीजो॥
श्रीदामा आदिक सब ग्वालन मेरे हुतो भेंटियो।
सुख-संदेस सुनाय हमारो गोपिन को दुख मेटियो॥
मंत्री इक बन बसत हमारो ताहि मिले सचु पाइयो।
सावधान ह्वै मेरे हूतो ताही माथ नवाइयो॥
सुन्दर परम किसोर बयक्रम चंचल नयन बिसाल।
कर मुरली सिर मोरपंख पीताम्बर उर बनमाल॥
जनि डरियो तुम सघन बनन में ब्रजदेवी रखवार।
बृन्दावन सो बसत निरंतर कबहुँ न होत नियार॥
उद्धव प्रति सब कही स्यामजू अपने मन की प्रीति।
सूरदास किरपा करि पठए यहै सकल ब्रज रीति॥१॥
...(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
‘’’नव-निधि’’’ १९४८ ई॰ में बनारस के सरस्वती-प्रेस द्वारा प्रकाशित प्रेमचंद के नौ भावपूर्ण कहानियों का एक संग्रह है। ये नौ कहानियाँ हैं –– राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता तथा पछतावा।
बुन्देलखण्ड में ओरछा पुराना राज्य है। इसके राजा बुन्देले हैं। इन बुन्देलों ने पहाड़ों की घाटियों में अपना जीवन बिताया है। एक समय ओरछे के राजा जुझारसिंह थे। ये बड़े साहसी और बुद्धिमान् थे। शाहजहाँ उस समय दिल्ली के बादशाह थे। जब शाहजहाँ लोदी ने बलवा किया और वह शाही मुल्क को लूटता पाटता ओरछे की ओर आ निकला, तब राजा जुझारसिंह ने उससे मोरचा लिया। राजा के इस काम से गुणग्राही शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने तुरन्त ही राजा को दक्खिन का शासन-भार सौंपा। उस दिन ओरछे में बड़ा आनन्द मनाया गया। शाही दूत खिलअत और सनद लेकर राजा के पास आया। जुझारसिंह को बड़े-बड़े काम करने का अवसर मिला। सफ़र की तैयारियाँ होने लगी, तब राजा ने अपने छोटे भाई हरदौल सिंह को बुलाकर कहा-"भैया, मैं तो जाता हूँ। अब यह राज-पाट तुम्हारे सुपुर्द है। तुम भी इसे जी से प्यार करना। न्याय ही राजा का सबसे बड़ा सहायक है। न्याय की गढ़ी में कोई शत्रु नहीं घुस सकता, चाहे वह रावण की सेना या इन्द्र का बल लेकर आये। पर न्याय वही सच्चा है, जिसे प्रजा भी न्याय समझे। तुम्हारा काम केवल न्याय ही करना न होगा, बल्कि प्रजा को अपने न्याय का विश्वास भी दिलाना होगा। और मैं तुम्हें क्या समझाऊँ, तुम स्वयं समझदार हो।" (पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- हिंदी व्याकरण.pdf [६९६ पृष्ठ]
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
- खूनी औरत का सात ख़ून.djvu [१८६ पृष्ठ]
रचनाकार
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल 1865 — 16 मार्च 1947) हिंदी भाषा के कवि, निबंधकार तथा संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- प्रियप्रवास (1914), खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य जो कृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रवास की घटना पर आधारित
- चोखे चौपदे (1924), हरिऔध हजारा नाम से भी प्रसिद्ध इस पुस्तक में एक हजार चौपदे हैं
- वेनिस का बाँका (1928), अंग्रेजी नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस का अनुवाद
- रसकलस (1931), मुक्तकों का संग्रह
- रस साहित्य और समीक्षायें (१९५६), आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह
- हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास
आज का पाठ
"आज बंदी छुटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन वर्षों में उसने कठिन तपस्या करके जो दस-पाँच रुपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सत्कार और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये। पति के लिए धोतियों का नया जोड़ा लाई थी, नये कुरते बनवाये थे, बच्चे के लिए नये फोट और टोपी की योजना की थी। बार-बार बच्चे को गले लगाती, और प्रसन्न होती। अगर इस बच्चे ने सूर्य की भाँति उदय होकर उसके अँधेरे जीवन को प्रदीप्त न कर दिया होता तो कदाचित् ठोकरों ने उसके जीवन का अन्त कर दिया होता।.."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५२४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६३,१७४
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,३७१, शोधित पृष्ठ = ६८,२४१
- समस्याकारक = ६, अशोधित = ९२,२०५, रिक्त = २,७२२
- सामग्री पृष्ठ = ५,७३४, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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